बड़े हसीं थे वो लम्हे चार
जिनकी याद आती है बार बार
31 मई की रात का वो अन्धकार
वक्त बेवक्त कर देता है मुझको लाचार
वो कैफे की बहार
वो दोस्तोँ का अनूठा प्यार
वो उनसे मिलना आखरी बार
वहीँ कहीं खड़ा था मैं, लाचार
वो मन की गति से हाथ का चलना
दोस्तोँ की डायरी को था जो भरना
वो कुछ देर और रुकने का बहाना
फिर दोस्तोँ का वो गाली सुनाना
फिर कहना था वो अंतिम अलविदा
अशोक से gate का वो आखिरी गुलजार
निकली बेगानो की एक टोली, होने को जुदा
रास्ते में ही आई उस पार से भी एक पुकार
उस पुकार की गूंज क्यूँ हटती नहीं
वो कारवां नज़रो से क्यूँ जाता नहीं
देखो, मेरे कंधे पर रख कर सर
आंसू बहा रहा है मेरा एक बिंदास हमसफ़र
उसके वो लफ्ज़ क्यूँ मुझको रुला रहे हैं
कोई रोको उन्हें, इतनी जल्दी बस को क्यूँ बुला रहे हैं
पर नसीब का निकला एक और खोट
और जल्दी आकर बस ने लगा दी दिल पे एक गहरी चोट
बस ने लगाई जोर से दहाड़
और ख़त्म हो गए वो सुहाने मौसम चार
पर चोट का था ऐसा प्रहार
मोबाइल में घुस कर बहा दी आंसू की धार
कैसे भूलूं, उस Dairy Milk की मिठास
वो बस में भी लेना दोस्तोँ से उधार
उन गानो में छिपा वो दर्द भरा प्यार
वो विश्वास, वो फिर से मिलने की आस
एक कसक सी उठती है बार बार
कभी वो शब्द, वो गाने, तो कभी कुछ हालात
कभी वो लोग तो कभी उनका प्यार
मुश्किल कर देते हैं मेरे दिन और बेचैन मेरी रात |
This one is for those beautiful days and those amazing and wonderful people.
जिनकी याद आती है बार बार
31 मई की रात का वो अन्धकार
वक्त बेवक्त कर देता है मुझको लाचार
वो कैफे की बहार
वो दोस्तोँ का अनूठा प्यार
वो उनसे मिलना आखरी बार
वहीँ कहीं खड़ा था मैं, लाचार
वो मन की गति से हाथ का चलना
दोस्तोँ की डायरी को था जो भरना
वो कुछ देर और रुकने का बहाना
फिर दोस्तोँ का वो गाली सुनाना
फिर कहना था वो अंतिम अलविदा
अशोक से gate का वो आखिरी गुलजार
निकली बेगानो की एक टोली, होने को जुदा
रास्ते में ही आई उस पार से भी एक पुकार
उस पुकार की गूंज क्यूँ हटती नहीं
वो कारवां नज़रो से क्यूँ जाता नहीं
देखो, मेरे कंधे पर रख कर सर
आंसू बहा रहा है मेरा एक बिंदास हमसफ़र
उसके वो लफ्ज़ क्यूँ मुझको रुला रहे हैं
कोई रोको उन्हें, इतनी जल्दी बस को क्यूँ बुला रहे हैं
पर नसीब का निकला एक और खोट
और जल्दी आकर बस ने लगा दी दिल पे एक गहरी चोट
बस ने लगाई जोर से दहाड़
और ख़त्म हो गए वो सुहाने मौसम चार
पर चोट का था ऐसा प्रहार
मोबाइल में घुस कर बहा दी आंसू की धार
कैसे भूलूं, उस Dairy Milk की मिठास
वो बस में भी लेना दोस्तोँ से उधार
उन गानो में छिपा वो दर्द भरा प्यार
वो विश्वास, वो फिर से मिलने की आस
एक कसक सी उठती है बार बार
कभी वो शब्द, वो गाने, तो कभी कुछ हालात
कभी वो लोग तो कभी उनका प्यार
मुश्किल कर देते हैं मेरे दिन और बेचैन मेरी रात |
This one is for those beautiful days and those amazing and wonderful people.
You refreshed every moment we shared together with same intensity in different time span.
ReplyDeleteKeep it up.
With love,Luck and Light
DP
Sir.. these feelings are such that they come out on their own.. Those days are always very much refreshed in my mind and heart..
ReplyDeleteIt takes a minute to say hello and forever to say goodbye...probably the memories of d 31st May will linger forever...and so will that goodbye...
ReplyDeleteNice abhinay Sahab...ye to gajab likh dala aapne...:)
ReplyDeletechummi meri jaan magar kuch naya bhi daal
ReplyDeletevery Fresh !! nd wonderful!!
ReplyDeleteAbhinay u r a wonderful poet...do keep us posted regularly:)
ReplyDeleteAnd thats a big thing coming from you.. Thanks! :)
DeleteAnd, though regularly is tough, I will try writing!