Thursday, November 24, 2011

उजाले की तालाश

हम चाभी ढूंढ़ते रह गए
दरवाजा तो हमेशा खुला ही था
हम अँधेरे में घूमते रह गए
जैसे उजाला तो कभी मिला ही नहीं था

यूँ तो होती है चांदनी रात भी मगर
हम अमावस से पैरवा और दूज तक ही पहुँच सके
माचिस भी साथ था, दिवा भी पास था
फिर भी रौशनी हम ला न सके

मिली कभी रौशनी भी अगर
हम अँधेरे से बाहर आ न सके
मंजिल तो पाई हमने भी मगर
मंजिल को अपनी पा न सके

हम चाभी ढूंढ़ते रह गए
दरवाजा तो हमेशा खुला ही था
क्यूँ चाभी ही ढूंढ़ते रह गए
एक धक्का ही जब काफी था |


Thursday, November 17, 2011

थोड़ी देर

थोड़ी देर में जीवन अंकुरित होता है
थोड़ी देर में ही इतिहास में अंकित होता है
थोड़ी देर बना देता है इसको अनंत
और थोड़ी ही देर में हो जाता है इसका अंत

जो थोडा सा चल लूँ
तो आसमान में उड़ सकता हूँ
थोड़ी देर रुक जाऊं
तो मीलोँ पीछे छुट सकता हूँ

अगर थोड़ी देर बात कर लूँ
तो दिल जीत सकता हूँ
जो थोडा चुप हो जाऊं
न जाने कितनो को भयभीत कर सकता हूँ

थोड़ी देर हंस के
ज़िन्दगी जी लेता हूँ
थोड़ी देर रो लूँ
तो दिल का सारा बोझ धो लेता हूँ

थोड़ी देर में ही जीत है, थोड़ी देर में हार
बस थोड़ी ही देर में बदल जाता है संसार
कभी कर देता है हमको लाचार
तो कभी, कराता है बहुत इंतज़ार

इन थोड़ी थोड़ी देर को पहचान मेरे यार
जी ले इसको हर हाल में, हर बार
क्या पता किस थोड़ी देर में
हो जाये जीवन साकार ||

Tuesday, November 15, 2011

कौन है वो?


कभी मोबाइल में उसकी तस्वीर रखता हूँ
कभी हाथ पर उसका नाम लिखता हूँ
उसके ख्याल मात्र से ही चेहरे पे चमक देखता हूँ
Source: Internet
न जाने क्यूँ वो कागज़ का टुकड़ा अब भी पास रखता हूँ

कौन है वो?
जब ये खुद से पूछता हूँ
तो पहली बार खुद को निरुत्तर पाता हूँ
फिर बरबस ही एक आवाज़ आती है

एक कहानी है, जो लगता है बहुत पुरानी है
एक गीत है, जिसमे न हार है न जीत है
एक प्यार भरा एहसास है की कोई हर पल साथ है
एक सपना है जो बिलकुल ही अपना है

खुश हूँ तो मुस्कान है मेरी
मेरे रातोँ की चांदनी है वो
तो कभी भीनी भीनी हवा की शीतलता है
अकेलेपन में एक जिंदादिल साथ है
भीड़ में भी एक अटल विश्वास है
कभी एक खुशनुमा रास्ता है
तो कभी हमराही और कभी मंजिल

जिसको पढ़ न सकूँ, ऐसी एक किताब है
एक उन्सुल्झे सवाल का जवाब है
एक अच्छे कल की उम्मीद है
कभी दिवाली है तो कभी ईद है


कभी सोचता हूँ की एक टेंशन है
फिर ये टेंशन भी अच्छी लगती है
कभी लगता एक दर्द है जो बहुत ख़ास है
तो कभी एक दवा है जिससे चलती हर सांस है


कभी गलतियां करने की एक वजह है
तो कभी गलतियो को सुधारने की एक जगह है
इस बददिमाग का दिमाग है कभी
तो कभी इसकी मुर्खता झेलने वाला एक प्यारा सा राग है


समझ में नहीं आता, सिर्फ दिल्लगी है
या मेरी ज़िन्दगी है...


31 मई की वो रात

बड़े हसीं थे वो लम्हे चार
जिनकी याद आती है बार बार
31 मई की रात का वो अन्धकार
वक्त बेवक्त कर देता है मुझको लाचार

वो कैफे की बहार
वो दोस्तोँ का अनूठा प्यार
वो उनसे मिलना आखरी बार
वहीँ कहीं खड़ा था मैं, लाचार

वो मन की गति से हाथ का चलना
दोस्तोँ की डायरी को था जो भरना
वो कुछ देर और रुकने का बहाना
फिर दोस्तोँ का वो गाली सुनाना

फिर कहना था वो अंतिम अलविदा
अशोक से gate का वो आखिरी गुलजार
निकली बेगानो की एक टोली, होने को जुदा
रास्ते में ही आई उस पार से भी एक पुकार

उस पुकार की गूंज क्यूँ हटती नहीं
वो कारवां नज़रो से क्यूँ जाता नहीं
देखो, मेरे कंधे पर रख कर सर
आंसू बहा रहा है मेरा एक बिंदास हमसफ़र

उसके वो लफ्ज़ क्यूँ मुझको रुला रहे हैं
कोई रोको उन्हें, इतनी जल्दी बस को क्यूँ बुला रहे हैं
पर नसीब का निकला एक और खोट
और जल्दी आकर बस ने लगा दी दिल पे एक गहरी चोट

बस ने लगाई जोर से दहाड़
और ख़त्म हो गए वो सुहाने मौसम चार
पर चोट का था ऐसा प्रहार
मोबाइल में घुस कर बहा दी आंसू की धार

कैसे भूलूं, उस Dairy  Milk की मिठास
वो बस में भी लेना दोस्तोँ से उधार
उन गानो में छिपा वो दर्द भरा प्यार
वो विश्वास, वो फिर से मिलने की आस

एक कसक सी उठती है बार बार
कभी वो शब्द, वो गाने, तो कभी कुछ हालात
कभी वो लोग तो कभी उनका प्यार
मुश्किल कर देते हैं मेरे दिन और बेचैन मेरी रात |


This one is for those beautiful days and those amazing and wonderful people.

Saturday, November 12, 2011

खुश हूँ

खुश हूँ 
कल में भी खुश हूँ 
आज में भी खुश हूँ 
हर पल हर ज़ज्बात में खुश हूँ |

सुबह की आशा में खुश हूँ 
रात के भरोसे में भी खुश हूँ 
चाँद की शीतलता में खुश हूँ 
तो सूरज की तपिश में भी खुश हूँ
रौशनी है तो खुश हूँ 
पर अन्धकार में भी खुश हूँ 

गलतियां सुधार कर खुश हूँ
तो कभी गलतियां करके ही  
कभी हाथ पाकर खुश हूँ 
तो कभी हाथ बढाकर 
कभी गिर कर खुश हूँ तो कभी किसी को उठाकर 
और कभी किसी के उठने के लिए खुद को गिराकर 

आसमान में उड़कर खुश हूँ 
तो कभी पैदल चल कर ही 
शौक पूरे होँ तो खुश हूँ
कभी बिना शौक के ही खुश हूँ
आराम में खुश हूँ
और दर्द में भी खुश हूँ

आँखें खोल कर खुश हूँ
आँखें बंद कर लूँ तो और भी खुश हूँ
भीड़ में खुश हूँ
तो तन्हाई में भी खुश हूँ

तुम साथ हो तो खुश हूँ
तुम्हारी यादोँ में भी खुश हूँ
कभी पंछियो की भाँति साथ चह चहाकर खुश हूँ
तो कभी चकोर की तरह अपनी चाँद को देख कर ही

कभी कुछ कह कर खुश हूँ तो कभी तुमसे कुछ सुन कर
और कभी तुम्हारी ख़ामोशी  में ही खुश हूँ


प्यार कर के खुश हूँ
प्यार पाकर खुश हूँ
और प्यार देख कर भी खुश हूँ

कभी लहरोँ के साथ चलकर खुश हूँ
तो कभी हवाओं का रुख बदल कर खुश हूँ
सर उठाकर खुश हूँ
तो कहीं कहीं सर झुकाकर ही खुश हूँ

खुश हूँ
क्यूंकि ज़िन्दगी है
क्यूंकि मैं हूँ, तुम हो, हम साथ साथ हैं
खुश हूँ
क्यूंकि ज़िन्दगी को जीना है, काटना नहीं
क्यूंकि ज़िन्दगी जीने का मसकद ख़ुशी ही है |


Friday, November 11, 2011

दोस्त


दिन तो हो सकता है तेरे बिना
पर बिन तेरे बहुत मुश्किल है इसको हर रोज़ जीना
तू मेरी ज़िन्दगी का है एक खज़ाना
तो कभी है एक प्यारा सा बहाना

यूँ तो है तू बहुत ही जरुरी
फिर भी कभी कभी लगता है मज़बूरी
लगे अच्छी या लगे बुरी
तेरे बिना ज़िन्दगी तो है अधूरी ..

इस ज़ालिम दुनिया में एक हसीं नज़ारा है तू
इस बेदर्द भीड़ में एक जादुई सहारा है तू
ज़िन्दगी के इस रहगुजर में
एक अद्भुत सा हमसफ़र है तू

तन्हाई में एक विश्वास भरा साथ है तू
जरुरत पड़ने पर सबसे पहला हाथ है तू
कमजोर बाजुओं को भी जो कर दे प्रबल
ऐसा एक निःस्वार्थ बल है तू

गौर से देखे तो एक तजुर्बा है तू
कभी भांगड़ा है तो कभी गरबा है तू
विविध रसो में एक अद्वितीय हाला है तू
मेरी तो जीवन मधुशाला है तू

तुमको बदल नहीं सकता कोई भी trend  
मेरे दोस्त, हम तो कहते है तुमको FRIEND ..

Thursday, November 10, 2011

Reflections

Here I am, on this stage
Playing the drama of my age
Not all serious, neither fully hilarious
Its but a journey quite mysterious


A journey full of mistakes
And there is no U- turn that I can take
No eraser, no undo, no redo
Just a one way path to go to..


Nothing is certain but actions
And the situations don't always have easy solutions
All I have is my reflections
For better future interactions..