Tuesday, December 3, 2013

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ

फिस्कल डेफिसिट से दूर
एक छोटे से शहर के, उस छोटे से घर की
डेफिसिट के बारे में बताना चाहता हूँ

4G मोबाइल की बात नहीं
उस टेलीफोन के चोगे के
वो चार नंबर्स घुमाना चाहता हूँ

किसी करप्शन की बात नहीं
वो चुपके से फ्रिज से बर्फ चुराना
उस डब्बे से सिक्के निकाल टाफी खाना चाहता हूँ

किसी शिप के डूबने या  प्लेन के क्रेश होने की बात नहीं
बारिश के दिन में वो नाव से नाव लड़ाना
वो कागज़ के हवाई जहाज बनाना चाहता हूँ

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ
अपने अंदर टटोलना चाहता हूँ
उन ज़ज्बातों को शब्दों में घोलना चाहता हूँ
अपने आसुओं से आँखें भिगोना चाहता हूँ
फिर मधुर कोई तान छेड़ना चाहता हूँ
ख़ुशी के सरगम बिखेरना चाहता हूँ
वो हसीं लम्हें फिर जीना चाहता हूँ
आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ।।

Friday, November 29, 2013

मैं कोई लेखक नहीं हूँ

मैं कोई लेखक नहीं हूँ

कभी खुशियाँ जाहिर करता हूँ
तो कभी ग़म के आँसू शब्दोँ में पिरो देता हूँ

कभी थोड़ी आशाएँ होती हैं
तो कभी कुछ इच्छाएँ

कभी तुम्हारी खूबसूरती होती हैं
तो कभी मेरा प्यार

कभी एक अटल विश्वास होता है
तो कभी कुछ करने का एहसास होता है

कभी कुछ हसीं यादें होती हैं
तो कभी एक मनोरम साथ होता है

कभी रास्ते की बात होती है
तो कभी मंजिल बहुत पास होती है

अँधेरी रात से डर जाता हूँ कभी
तो चाँद की रौशनी में कुछ बरसात होती है

बोल देता हूँ कभी
तो कभी चुप्पी में भी बात होती है

कभी भावनाओं का शिकार हूँ
तो कभी संवेदनाओं का
मैं कोई लेखक नहीं हूँ
मैं तो बस एक इंसान हूँ।।

Saturday, October 26, 2013

तकल्लुफ

तकल्लुफ की बात तो ये है कि
जब बहना चाहता हूँ
तो तुम रफ़्तार नहीं देते
और जब गरजना चाहता हूँ
तो तुम पुचकार कर पिघला देते हो..  

Sunday, September 22, 2013

डूबना

यूँ मेरे अल्फाज़ो को मत तौल
कभी मेरे प्यार की गहराई भी देख
न चाहते हुए भी डूबना पड़ेगा
और डूब के भी संवर जाओगे।

Tuesday, September 3, 2013

ये अभिनय क्यूँ है ..

कल तो पूनम की रात थी,
फिर आज चाँद आसमां में है क्यूँ नहीं

भरपूर नशे में थी ज़िन्दगी, आज भी है
फिर आज इतनी ख़ामोशी क्यूँ है

भीड़ में तो कल भी था, आज भी हूँ
फिर आज इतनी मायूसी क्यूँ है 

पहचान होती थी कल मगर
आज तो सिर्फ एक नाम है 
फिर आखिर ये अभिनय क्यूँ है ..

Thursday, August 15, 2013

स्वाधीनता

Source : Internet 
स्व के जब हो जाओ अधीन
स्वाधीनता तब तुम मनाना।।

यूँ जात-पात में बाँट कर
धर्म और भाषा पहचान कर
पैसो के होकर अधीन तुम
स्वाधीन तो कहला लो मगर
स्वाधीन तुम हो नहीं।।

सिर्फ राष्ट्र गान गा लेना
तिरंगे को लहरा लेना
चंद देशभक्ति गाने बजा लेना
१५ अगस्त को छुट्टी मना लेना
और स्वाधीन कहला लेना
पर स्वाधीन तुम हो नहीं।।

सोचो जरा
गदगद कर देता है जब यह आडम्बर ही
तो वो सच कितना महान होगा
छलावे से थोड़ा उठकर सोचो
अब तो सच्ची स्वाधीनता चखकर देखो।।

Friday, June 28, 2013

बस यूँ ही ..

बस यूँ ही,
दो पल बाँट लें क्या??

वर्षोँ से साथ तो निभाया है
थोड़ा वक्त भी कभी कभी निकाल लें क्या?
कभी कुछ कह लें
कभी सबसे सुन भी लें क्या?
जो ज्ञान बटोरते चल रहें हैं
थोड़ा सब में बाँट भी लें क्या?
कभी आशीर्वाद तो कभी प्रोत्साहन
कभी हिम्मत तो कभी शाबाशी
ऐसी ही रुत फिर चला लें क्या?
साथ में थोड़ा हस लें
थोड़ी टांगें खींच लें
कुछ अपने कुछ दुनिया के ग़म बाँट लें क्या?
बेमिसाल काम और भरपूर मस्ती का वो सिलसिला
अब भी चलाते रहें क्या??

बस यूँ ही ..  थोड़े पल बाँट लें क्या??

बस यूँ ही ..

Wednesday, May 15, 2013

जानलेवा है..

तेरा ना होना तो फिर भी बर्दाश्त होता
तेरे होने के सिर्फ एहसास का होना,
जानलेवा है ..

तुझसे न मिलता तो शायद अच्छा होता 
यूँ मिलकर फिर बिछड़ने की बात का होना 
बहुत जानलेवा है ..

खुली आँखें हीं देखतीं तुम्हें तो शायद कुछ न होता
आँखें मूंदते ही वो तेरा दिखाई देना 
कसम से जानलेवा है .. 


सिर्फ दिल की ही बात होती तो समझा लेता
इस दिमाग पे भी तेरा राज होना 
सच में, जानलेवा है ..







Saturday, April 27, 2013

आज खुश नहीं हूँ मैं

न जाने क्यूँ,  आज खुश नहीं हूँ मैं
अच्छे का तो पता नहीं
कुछ बुरा भी यूँ हुआ नहीं
ग़म तो कुछ खास है नहीं
फिर भी, आज खुश नहीं हूँ मैं।।


Thursday, March 14, 2013

मैं लिखना तो चाहता हूँ

मैं लिखना तो चाहता था मगर
तेरी वो करतूत न होती
तो शायद लिखने का सोच भी न पाता।


मैं लिखना तो चाहता था मगर
तेरी वो जिद न होती
तो शायद वो शुरुआत भी ना हो पाती।


मैं लिखना तो चाहता हूँ मगर
तेरी करतूतें थोड़ी धुंधला सी गयी हैं,
तूने कोई और जिद सी ठान ली है
और मेरे शब्द थोड़े बिखर से गए हैं।

Monday, February 4, 2013

...हारना कभी नहीं

Long way to go
Source: Internet



उठ गए हैं एक बार जो कदम
गिर तो सकते हैं मगर
रोकना कभी नहीं।

हार जाना तुम मगर
हारना कभी नहीं।।

Sunday, January 27, 2013

मेरी मंजिल

निगाहें मंजिल पे कुछ इस कदर टिकी थी
कि रास्ते की परवाह मैं कर न सका
कभी झुका, कभी गिरा
ठोकरें खायी, शर्मिंदा भी होना पड़ा
पर चलता रहा
कई बार तो मुंह की भी खानी पड़ी
फिर भी बढ़ता रहा
हौसला अब भी बुलंद है
नज़रें अब भी वही पे रुकी हुई हैं
रास्ते भले ही धुंधले हो
मंजिल तो बिलकुल साफ़ है
थक के ही सही
देर से ही
प्यास तो बुझेगी ही
आलिंगन तो करूँगा ही तुम्हारा
रास्ते ढूंढ़ लूँ या बना लूँ
मेरी मंजिल, तुम तक पहुचुन्गा तो जरुर ।