Tuesday, December 15, 2015

ख़ुशी के मंज़र..

ख्वाबों के मकाँ टूटे कुछ इस कदर
कि अब खुश हूँ बस खुश रहने के लिए।
और खुश हूँ
कि खुश हूँ बस खुश रहने के लिए,
ना कि किसी शख़्श,
किसी चीज़, किसी मंज़िल को पाने के लिए... 

No comments:

Post a Comment