Tuesday, December 15, 2015

ख़ुशी के मंज़र..

ख्वाबों के मकाँ टूटे कुछ इस कदर
कि अब खुश हूँ बस खुश रहने के लिए।
और खुश हूँ
कि खुश हूँ बस खुश रहने के लिए,
ना कि किसी शख़्श,
किसी चीज़, किसी मंज़िल को पाने के लिए... 

Tuesday, November 3, 2015

तेरी यादें...

सोच मेरी थम सी गयी थी
शब्द कम पड़ने लगे थे
कलम मेरी रुक सी गयी थी
कविता मेरी कही खो सी रही थी

फिर कल रात सपनों में आकर

उड़ती तेरी झुल्फों ने
सोच को मेरे नया आयाम दे दिया

ज़ालिम सी तेरी मुस्कुराहट ने
मेरे होठों में शब्द भर दिए

तेरा वो शर्माना
मेरी कलम को बेशरम बनाने लगा

तेरा कतरना, वो इंकार करना
मुझे हर बार नया जोश देने लगा

तेरी जिंदादिली ने
मेरे कविता में जान फूंक दी

थोड़ा और आशिक़,
थोड़ा और खुशमिज़ाज बना दिया।