सोच मेरी थम सी गयी थी
शब्द कम पड़ने लगे थे
कलम मेरी रुक सी गयी थी
कविता मेरी कही खो सी रही थी
फिर कल रात सपनों में आकर
उड़ती तेरी झुल्फों ने
सोच को मेरे नया आयाम दे दिया
ज़ालिम सी तेरी मुस्कुराहट ने
मेरे होठों में शब्द भर दिए
तेरा वो शर्माना
मेरी कलम को बेशरम बनाने लगा
तेरा कतरना, वो इंकार करना
मुझे हर बार नया जोश देने लगा
तेरी जिंदादिली ने
मेरे कविता में जान फूंक दी
थोड़ा और आशिक़,
थोड़ा और खुशमिज़ाज बना दिया।
शब्द कम पड़ने लगे थे
कलम मेरी रुक सी गयी थी
कविता मेरी कही खो सी रही थी
फिर कल रात सपनों में आकर
उड़ती तेरी झुल्फों ने
सोच को मेरे नया आयाम दे दिया
ज़ालिम सी तेरी मुस्कुराहट ने
मेरे होठों में शब्द भर दिए
तेरा वो शर्माना
मेरी कलम को बेशरम बनाने लगा
तेरा कतरना, वो इंकार करना
मुझे हर बार नया जोश देने लगा
तेरी जिंदादिली ने
मेरे कविता में जान फूंक दी
थोड़ा और आशिक़,
थोड़ा और खुशमिज़ाज बना दिया।