Tuesday, December 3, 2013

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ

फिस्कल डेफिसिट से दूर
एक छोटे से शहर के, उस छोटे से घर की
डेफिसिट के बारे में बताना चाहता हूँ

4G मोबाइल की बात नहीं
उस टेलीफोन के चोगे के
वो चार नंबर्स घुमाना चाहता हूँ

किसी करप्शन की बात नहीं
वो चुपके से फ्रिज से बर्फ चुराना
उस डब्बे से सिक्के निकाल टाफी खाना चाहता हूँ

किसी शिप के डूबने या  प्लेन के क्रेश होने की बात नहीं
बारिश के दिन में वो नाव से नाव लड़ाना
वो कागज़ के हवाई जहाज बनाना चाहता हूँ

आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ
अपने अंदर टटोलना चाहता हूँ
उन ज़ज्बातों को शब्दों में घोलना चाहता हूँ
अपने आसुओं से आँखें भिगोना चाहता हूँ
फिर मधुर कोई तान छेड़ना चाहता हूँ
ख़ुशी के सरगम बिखेरना चाहता हूँ
वो हसीं लम्हें फिर जीना चाहता हूँ
आज फिर कुछ लिखना चाहता हूँ।।