Thursday, February 2, 2012

मैं बहुत बोलता हूँ


मैं बहुत बोलता हूँ
हँसता हूँ, हँसाता हूँ
लोगोँ का मन बहलाता हूँ
परेशान करता हूँ
irritate भी कर देता हूँ
लड़ता हूँ, झगड़ता हूँ
सताता हूँ, मनाता हूँ
सवाल कई पूछता हूँ
जबाब नए नए देता हूँ
गाने सुनाता हूँ
philosophy झाड़ता हूँ
किस्से, कवितायेँ दोहराता रहता हूँ

मैं बहुत बोलता हूँ
कभी चुप नहीं रह पाता हूँ
या चुप रहना नहीं चाहता हूँ
चुप्पी से डरता हूँ
तन्हाई से बहुत झिझकता हूँ
या कुछ भी बोल कर
कुछ छिपाता हूँ
अपने आप से भागता हूँ
या Tension को भुलाता हूँ
दुनिया अपनी बनाता हूँ
या असली दुनिया से जी चुराता हूँ
कतराता हूँ,  या जताता हूँ

कुछ भी हो
मैं बहुत बोलता हूँ
क्यूंकि, खुशियाँ बांटना चाहता हूँ
ग़मो को भुलाना चाहता हूँ
कुछ सीखना और सीखाना चाहता हूँ
ज़िन्दगी को जीना चाहता हूँ ।